विपक्षी विथ राव से आसान भाजपा की राह

जब एक राजनीतिक दल या उसके नेतृत्व वाला गठबंधन केंद्र समय देश के दो तिहाई राज्यों की सत्ता पर काबिज हो और उसका प्रतिद्वंद्वी दल या उसके नेतृत्व वाला गठबंधन हाशिए पर खिसक चुका हो तब दो राज्यों के विधानसभा चुनाव की बहुत ज्यादा राजनीतिक असहमति तर्क सम्मत नहीं लगती। इसके बावजूद हरियाणा और महाराष्ट्र में 21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण समझे जाते हैं तो उसके भी अपने कारण है। राजनीतिक दल सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे पर है तो वह सच की दशकों से महाराष्ट्र राजनीतिक दलों के लिए चुनावी वह का मुख्य आर्थिक स्त्रोत रहा है। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई देश के वाणिज्यिक राजधानी भी कही जाती है देश के ज्यादातर कॉरपोरेट घरानों का मुख्य केंद्रीय आर्थिक उदारीकरण के बाद तेजी से फैली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने ग्राम बेंगलुरु हैदराबाद और चेन्नई को भी अपना मुख्यालय बनाया है लेकिन मुंबई को नजरअंदाज नहीं कर पाई थी कि देश पर राज का रास्ता उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से निकलता है सर्वाधिक लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश बहुमत में निर्णायक भूमिका निभाता रहा है तो उद्योग संपन्नता के सबसे बड़े केंद्र मुंबई की बदौलत महाराष्ट्र में चुनावी खर्चों के लिए चुनावी चंदे में सार्वजनिक योगदान देता राय। देश की राजधानी दिल्ली के तीन और बच्चे छोटे से राज्य हरियाणा का राजनीतिक महत्व अपनी भौगोलिक स्थितियों के चलते ही तो है बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पहली पसंद के रूप में उभरते और बढ़ा दिया है। दिल्ली के तीन और बसे हो के कारण देश की राजधानी में होने वाली राजनीतिक रैलियों की भीड़ जुटाने में हरियाणा अग्रणी रहा है। याद नहीं पड़ता कि हरियाणा की भागीदारी के बिना कोई दल नेता दिल्ली में कोई असरदार रैली कर पाया हो फिर हाल ही में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के केंद्र के रूप में उभरे राजनीतिक खासकर चुनावी राजनीति में हरियाणा का केंद्र बनकर उभरा है तब जाहिर है कि बड़े-बड़े बिल्डरों ने भी वहां का रुख किया है और जमीन अधिग्रहण के खेल में भी रफ्तार पकड़ी है इसमें सीएलयू और में चलने वाले पैसे का खेल तो अब आम हरियाणवी की जुबान पर है ऐसे में महाराष्ट्र और हरियाणा की सत्ता राजनीतिक दल नेता का लक्ष्य हर हाल में पाना चाहता है। इन दोनों राज्यों की सत्ता पर काबिज कर रखी है पर वर्ष 2014 की मोदी लहर में हवा हो गई महाराष्ट्र और हरियाणा के क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर भाजपा सत्ता में तो पहले ही भी रह चुकी थी लेकिन मोदी लहर ने 2014 में चुनाव कि मैं उसकी किस्मत ही बदल दी महाराष्ट्र में शिवसेना हमेशा बड़े भाई की भूमिका में ही नहीं रहती बल्कि पूरी के साथ वैसा ही व्यवहार करती है। सत्ता की खातिर महाराष्ट्र में शिवसेना के नखरे उठाना भाजपा की मजबूरी रही जैसे कि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल या फिर हरियाणा में कभी देवीलाल तो कभी बसंती लाल या फिर ओमप्रकाश चौटाला के 5 साल पहले हुए विधानसभा चुनावों ने पासा पलट दिया 14 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता से उत्साहित भाजपा ने महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव लड़ने का साहस दिखाया और परिणाम उसकी उम्मीदों से भी बेहतर आए