हाथरस कांड -: त्वरित प्रक्रिया या मंद परिवर्तन

हाथरस कांड के बाद महिला सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। पिछले कुछ वर्षों से ऐसे प्रकरण और इनके बाद होने वाले आरोप-प्रत्यारोप तो जैसे राष्ट्र का भाग्य बन चुके हैं सब के मध्य सुलगती आग आम जनता के क्रोध की लपटें , सोशल मीडिया सड़कों पर देखी जा सकती है। सरकार की आलोचना प्रशासनिक असफलता धर्म जाति से जुड़े कई मुद्दों की जो भयानक बाढ़ सोशल मीडिया में आई है उसमें हम आप जैसे सभी आमजन ऐसे अपराधों के प्रति कठोर दंड की मांग करते नजर आते हैं। कविता कहानी #जस्टिस नाना तरह से जनता की जागरूकता और पीड़ा भी दिखाई दे रही है। अभिव्यक्ति का ऐसा लोकतांत्रिक मंच निश्चित ही लोकतंत्र के उत्कर्ष का प्रतीक है किंतु इन सब के मध्य चिंताजनक प्रश्न यह है कि क्या त्वरित प्रक्रिया के इस युग में हमारी युवा पीढ़ी और प्रबुद्ध वर्ग की जिम्मेदारी केवल अपना मत व्यक्त करने तक ही सीमित है? क्या सोशल मीडिया पर अपनी प्रक्रिया देने प्रशासनिक विफलता का रोना रोने के बाद हम अपने कर्तव्य से मुक्त हैं? और यदि ऐसा ही है तो फिर परिवर्तन की जिम्मेदारियां इन कंधों पर हैं? जनता की जागरूकता सराहनीय है लेकिन यह विचार करना भी आवश्यक है कि क्या यह जागरूकता हमें उचित परिणाम तक ले जा रही है? किसी भी घटना के पश्चात उसके दोषियों को दंड देने की मांग करना उस घटना का उपचार हो सकता है निरोध नहीं। यदि यह दंड ही पर्याप्त होते तो चंद महीने पहले निर्भया के दोषियों की फांसी के बाद ऐसी घटनाएं का अब दोहराव नहीं होता। क्या जनता प्रशासन और सरकार में बैठे चंद लोगों को अपना भाग्य विधाता मान चुकी है? क्या बलात्कार और , हत्या जैसे अपराधों और उसके बाद होने वाले आरोप-प्रत्यारोप सोशल मीडिया पर हेस्टैक जस्टिस का चलन ही अब राष्ट्र की अब नियति है? क्या हम दंडित आरोपियों के अनेक परिवारों में से हम अन्य अपराधों के बीच नहीं बोल रहे हैं? क्या क्या बलात्कार फांसी और इसकी बारंबार पुनरावृति ही राष्ट्र का भविष्य है? क्या जनता की भूमिका सिर्फ मांग करने की है? हमें ध्यान रखना चाहिए कि राष्ट्र समाज और नागरिकों से बनता है प्रशासन या सरकार से नहीं। आज जनता को ऐसे अपराधों को रोकने की मांग सरकार से नहीं अपितु स्वयं से करने की आवश्यकता है। प्रश्न यह है कि ऐसी तमाम क्रूरता और जघन्य अपराधों के बाद कितने अभिभावकों मैं संकल्प लिया कि वह अपने संपूर्ण परिवार के साथ इस विभीषिका पर चर्चा करेंगे? कितने परिवारों ने यह संकल्प लिया कि वह अपने बेटे से इस बारे में बात करेंगे कहीं वह इस दिशा में तो नहीं बढ़ रहा है?


कितने अभिभावकों ने संकल्प लिया कि वह अपनी बेटियों को शारीरिक रूप से एवं मानसिक रूप से मजबूत बनाएंगे उन्हें अच्छा पोषण देंगे आत्मरक्षा के गुर सिखाएंगे उन्हें ऐसा वातावरण देंगे कि वह किसी भी तरह से हो रहे अपने शोषण में घर को बता सकेंगी उसके खिलाफ खड़ी हो सकेंगी? कितने गांव पंचायतों मैं स्वयं के स्तर पर विचार किया ऐसे व्यक्तियों की पहचान की जो ऐसी घटना को अंजाम दे सकते हैं? कितने व्यक्तियों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से पूर्व विचार किया कि वह भी किसी महिला प्रताड़ना के भागी तो नहीं? महिलाएं जो कि स्वयं इस अपराध का केंद्र बिंदु हैं ऐसी विभीषिका ओं के दौर में उन में कितने परिवर्तन आए हैं?


कार्यस्थल घर परिवार गांव में किसी पुरुष की गंदी मानसिकता के संबंध में उससे जुड़ी हर महिला संज्ञान रखती है फिर कितनी महिलाओं ने दृढ़ संकल्प लिया कि वह पुरुषवादी समाज और घृणित मानसिकता के विरुद्ध एक दूसरे का हथियार बनेंगी? आवश्यक है कि राष्ट्र की प्रत्येक महिला अपने व्यक्तिगत लाभ हानि संबंधों से परे जाकर आज दृढ़ संकल्प वान हो कि किसी भी परिस्थितियों में किसी महिला के प्रति शोषण दुर्व्यवहार के विरुद्ध में एकजुटता से खड़ी होंगे। महिलाओं का संगठन ही महिला शोषण के विरुद्ध सबसे सशक्त उपाय हैं और आवश्यक है कि यह संगठन सड़क पर नहीं बल्कि समाज घर परिवार में युद्ध घोष की तरह उठे।


यौन शोषण जैसे अपराध जितने प्रशासनिक असफलता के उदाहरण नहीं है उससे अधिक हमारे सामाजिक पतन के सूचक हैं और समाज की दे हमें अपना बताइए नासूर किसी कानूनी दवा से नहीं अपितु सामाजिक चेतना एकजुटता और क्रांति से ही ठीक होने की संभावना रखता है।


, निधि द्विवेदी